अब रो मत जाने दे
रो मत , जी लिया मै जिंदगी अपनी ।मत रोक मुझे , जाना है अब जाने दे ।।
पा लिया है सब कुछ,अब बचा क्या है?
भर गया है अब जी मेरा ,अब जाने दे ।।
अब क्यों रहे बोझ बनकर इस जग में ?
रोना वहां जहां जन्म लेते ही मर जाता है,
जो जिंदगी का मजा भी नहीं ले पाता है ।।
तुम रो मत जी लिया मै जिंदगी अपनी ,
मत रोक मुझे जाना है अब जाने दे ।।
चाहता नहीं बोझ बनकर जीना यहां ,
अपने कारण कष्ट किसी दूसरे को देना ।
नहीं भा रहा मुझे भी परे-परे सोना ।।
तुम रो मत जी लिया मै जिंदगी अपनी
मत रोक मुझे जाना है अब जाने दे ।।
अब भा रहा मुझे जग छोड़ के जाना ,
माना किया है बहुत तुम शेवा मेरा –
पर कहा भी है कि बहुत ये पेर रहा
बोझ बनकर मेरा भी समय ये ले रहा
हा तुमने कहा है,फिर क्यों तुम सब रो रहा
अब रो मत जी लिया मै जिंदगी अपनी
मत रोक मुझे जाना है अब जाने दे ।।
रहता मौत हाथ मेरे तो न देता कष्ट तुझे
रहता नहीं यहां मै दिन–रात परे परे ,
चला जाता कब ही इस जग को छोड़ के ।
अब क्यों रोते हो इस हालत में देख के ।।
तुम रो मत जी लिया मै जिंदगी अपनी
मत रोक मुझे जाना है अब जाने दे।।
अमित कुमार वंशी
