सोमवार, 5 अगस्त 2024

जब वर्षा आई

 जब वर्षा आई 

तड़-तड़ करके बिजली चमकी, 

सर-सर सर-सर चली हवा । 

इतने में ही बादल आ कर, 

अंधेरा गगन में छा दिया ।।


देख यह मेंढक को भी, 

रहा न गया धरती के अंदर । 

वह भी आकर के उपर , 

लगा करने शोर टर-टर-टर ।।


यह देख किसान का चेहरा, 

जोर से खिलखिला उठा। 

भाग गई वो सारी दुविधा , 

जिसमें था वो पड़ा रहा ।।


लेकिन बैलों के चेहरे पर, 

एक बरी दुविधा आ पड़ी। 

चली गई वो सारी खुशियां, 

जिसमें था वो सुरक्षित पड़ा। 

आ गया गुस्सा बैलों को- 

इस लिए मन ही मन बुदबुदा रहा ।।


धरती माँ का भी आंचल था- 

इतने दिनों से सुखा पड़ा ।।

आ गई फिर से हरियाली, 

आँचल फिर से लहर उठा ।।

छा गई उनके भी चेहरे पर मुस्काई , 

जब उनकी आंचल फिर से लहराई- 

जब हरियाली ही हरियाली छाई ।।


                                अमित कुमार वंशी 

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