रविवार, 14 सितंबर 2025

हिंदी दिवस


आज हिंदी दिवस है,

हर कोई शान से लिखता है,

कविता, शायरी और गजल,

भाषा का मान बढ़ता है प्रवल।


जब बीत जाता आज का पल 

कल करे कोई फिर यही पहल 

तो कुछ चेहरे अनसुने करते हैं,

कान खुद-ब-खुद बहरे हो जाते हैं।


सिर्फ किताबों के पन्नों पर ही 

ये शब्दों का मान रह जाता है,

मंच पर उभरने का सपना

अक्सर बेमान ही रह जाता है।


हम रचनाकार भी तो इंसान है,

सिर्फ सम्मान की आस लगाए बैठे है,

हमारी कविता में खुदकी एहसास हैं,

शब्दों में हमारी आत्मा की  धुन है।


हां है सम्मान यहां भी कुछ के नाम 

चाहे करे बड़ा या छोटा रचनात्मक काम 

जो अक्सर दूसरों को मौका नहीं देते,

उभरते स्वर दबाकर अपनी झंडा गाड़ते।


क्यों वो भूल जाते है अक्सर कि

एक दिन हर पेड़ कभी बीज ही था,

यहां जन्मे हर रचनाकार कभी

संकोच से भरा नवसीखिया ही था।


आओ, मंच बाँटें, सबको मौका दें,

हर एक एक कलम को खुलने दें,

हिंदी तभी पूरी जग में महान बनेगी

जब हर किसी को यहां सम्मान मिलेगी।

                               अमित कुमार वंशी           



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