सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

पहली दफा घर से दूर दीवाली

आज हर घर-घर दीवाली है…

पर इस बार मुझे अधूरी सी लगती है,

रोशनी तो है चारों ओर हमारे आस पास,

पर मन में एक हल्की सी अंधियारी लगती है।


पहली बार हूं आज मै घर से दूर,

ना दादी की आवाज़, ना दादा का वो शोर,

ना आंगन में रंगोली बनाने की कोई बेचैनी,

ना दीयों की लौ से घर आंगन सजाने का होर।


याद आते हैं वो बीते सारे पल सुनहरे,

जब सब मिलकर सजाते थे घर आंगन के घेरें,

मां के हाथों के वो अनेकों पकवान की खुशबू,

और भाई-बहनों की हँसी में बसी खुशी के फेरे।


दोस्तों संग पटाखों की रौनक और भाग दौर,

पर आज बस यादें हैं, और मन में अजीब शोर 

फिर भी मन कहता है खुद से खुद के लिए

दीवाली तो दिल में जलने वाली रौशनी है,

जहां परिवार की दुआ रहे और बढ़े प्रगति की ओर 


दूर रहकर भी आज यही कामना है उससे हमारी 

हर घर, हर दिल यूं ही रोशनी से जगमगाता रहे,

और मेरा प्यार, मेरी याद वहां तक पहुंच जाए 

जो हमें महसूस कर दूर से बधाई दे  इस दिवाली ।



                               अमित कुमार वंशी                    


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